Traffictail

World Best Business Opportunity in Network Marketing
laminate brands in India
IT Companies in Madurai

 मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने 1 सितंबर 1994 खटीमा गोलीकांड की 30 वीं वर्षगांठ पर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की,शहीदों के परिजनों को शॉल ओढ़ाकर किया सम्मानित।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने 1 सितंबर 1994 खटीमा गोलीकांड की 30 वीं वर्षगांठ पर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की,शहीदों के परिजनों को शॉल ओढ़ाकर किया सम्मानित।

खटीमा उधम सिंह नगर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राज्य स्थापना के लिए 1 सितंबर 1994 को शहीद हुए आंदोलनकारियों के शहादत दिवस पर खटीमा में मुख्य चौराहे के पास स्थित शहीद स्थल पहुचकर शहीदो की मूर्तियों का माल्यर्पण कर श्रंद्धाजलि अर्पित की और शहीदों के परिजनों को शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया।

उत्तराखंड राज्य के निर्माण लिए हुए आंदोलन में 1 सितंबर 1994 के दिन उधम सिंह नगर जनपद के खटीमा नगर में निहत्ते राज्य आंदोलनकारीयो पर चलाई गई गोलियों ने सात आंदोलनकारियों की शहादत ले ली थी। उन सात आंदोलनकारी की याद में हर वर्ष 1 सितंबर को खटीमा गोली कांड की वर्षगांठ के अवसर के रूप में मनाया जाता है इस वर्ष भी खटीमा नगर के मुख्य चौराहे पर शहीद स्मारक में शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए कार्यक्रम का आयोजन किया गया।

इस अवसर पर स्वयं प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने शहीद स्मारक में स्थापित की गई शहीदों की प्रतिमाओं पर माल्यार्पण कर उन्हें पुष्पांजलि अर्पित की।

खटीमा गोलीकांड की 30वीं बरसीं पर रविवार को शहीद स्मारक स्थल पर मुख्यमंत्री धामी ने शहीद राज्य आंदोलनकारियों भगवान सिंह सिरौला, प्रताप सिंह, रामपाल, सलीम अहमद, गोपीचंद, धर्मानंद भट्ट और परमजीत सिंह की मूर्तियों पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित की।

उन्होंने कहा कि आज का दिन प्रसन्न होने का दिन नहीं है, क्योंकि आज हम उत्तराखंड की नींव रखने वाले उन महान लोगों को याद कर रहे हैं जिन्होंने उत्तराखंड निर्माण के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया।

शहीद आंदोलनकारियों ने बहनों की राखियों, मां की ममता को छोड़कर राज्य निर्माण में सर्वाेच्च बलिदान दिया। उन्होंने कहा कि हमारे बेहतर भविष्य के लिये इन हुतात्माओं ने अपना वर्तमान और भविष्य दोनों कुर्बान कर दिए । उन्होंने कहा उत्तराखण्ड की जनता इन वीरों की आजन्म ऋणी रहेगी । जिनकी शहादत के परिणाम स्वरुप हमारे इस राज्य का गठन हुआ है। उन्होंने कहा कि हमें यह याद करने की आवश्यकता है कि आखिर क्यों इन महान लोगों ने राज्य निर्माण के लिए स्वयं का बलिदान दिया।

 

मुख्यमंत्री ने उपस्थित जन समूह को संबोधित करते हुए कहा कि हमारा लक्ष्य है कि हम राज्य निर्माण के लिए अपनी शहादत देने वाले शहीदों के सपनों को सच करने वाले उत्तराखंड राज्य का निर्माण करें और हम इसके लिए लगातार काम भी कर रहे हैं यह हमारे लिए गर्व की बात है कि आज हम राज्य निर्माण के लिए अपनी आहुति देने वाले शहीदों को सम्मानित कर पा रहे हैं।

उन्होंने कहा कि इन महान लोगों ने स्वयं का बलिदान इसीलिए दिया कि उन्हें लगता था कि उत्तराखंड अलग राज्य बनकर ही सच्चे अर्थाे में उनके सपनों को पूरा कर सकता है। उन्होंने कहा कि स्वयं एक आंदोलनकारी होने के नाते आंदोलनकारियों के परिवार की पीड़ा समझ सकता हूं। खटीमा गोलीकांड को याद कर आज भी खटीमा वासियों सहित पूरे उत्तरखण्ड के लोगों का दिल सहम जाता है। उन्होंने कहा कि राज्य निर्माण के लिए सबसे पहली शहादत खटीमा की धरती पर दी गई थी और इस शहादत के फलस्वरूप हम पृथक राज्य के रूप में अपनी अलग पहचान बना पाएं हैं, जो खटीमावासियों के लिए गर्व की बात है।

शिक्षा, स्वास्थ्य व पर्यटन के क्षेत्र में मजबूत हो रहा उत्तराखंड
मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखंड में कनेक्टिविटी, शिक्षा, स्वास्थ्य और पर्यटन का इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत करने का कार्य किया जा रहा है। औद्योगिकीकरण, पर्यटन और कृषि के क्षेत्र में विकास कर रोजगार सृजन और आर्थिक विकास को गति प्रदान की जा रही है। मुख्यमंत्री ने कहा कि शहीद आंदोलनकारियों के परिवारों को प्रतिमाह 3000 रुपये पेंशन दी जा रही है। जबकि जेल गए, घायल और सक्रिय आंदोलनकारियों को क्रमशः 6000 और 4500 रुपये पेंशन दी जा रही है।

विधायक खटीमा भुवन कापडी और नानकमत्ता विधायक गोपाल सिंह राणा शहीदों को अपना श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए।

उपनेता प्रतिपक्ष ने वंचित 253 राज्य आदोलनकारियों को चिह्नित करने की मांग की
उप नेता प्रतिपक्ष व खटीमा विधायक भुवन कापड़ी ने मुख्यमंत्री को ज्ञापन देकर वंचित 253 राज्य आंदोलनकारियों को चिह्नित करने की मांग की। कापड़ी ने कहा कि वंचित 253 राज्य आंदोलनकारी चिह्नित राज्य आंदोलनकारियों के सामान ही अर्हता पूर्ण करते हैं। राज्य आंदोलनकारियों को 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण देने और महिलाओं को सरकारी नौकरी में आरक्षण देने पर लोगों ने मुख्यमंत्री का आभार व्यक्त किया।

ये लोग कार्यक्रम में रहे मौजूद।  सांसद अजय भट्ट,खटीमा विधायक भुवन कापडी, नानकमत्ता विधायक गोपाल सिंह राणा,काशी सिंह ऐरी, पूर्व सांसद महेन्द्र पाल दान सिंह रावत पूर्व चेयरमैन राज्य सहकारी बैंक उत्तराखंड, भाजपा प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य रमेश चंद्र जोशी, हुकुम सिंह कुंवर, दर्जा राज्यमंत्री अनिल कपूर डब्बू, पूर्व मंडी चेयरमैन नन्दन सिंह खड़ायत ,पूर्व मंडी चेयरमैन किच्छा कमलेंद्र सेमवाल ,भाजपा जिलाध्क्ष कमल जिन्दल ,नरेश चंद शहीद गोपी चंद के परिजन, मोहन पाठक हल्द्वानी , कैलाश तिवारी रानीखेत, गंभीर सिंह धामी

भगवान जोशी वरिष्ठ राज्य आंदोलन कारी, हरीश जोशी, पूरन सिंह बिष्ट वरिष्ठ राज्य आंदोलन कारी, किशोर सिंह राणा वरिष्ठ राज्य आंदोलन कारी, भुवन भट्ट, किशन सिंह बिष्ट , अमित पांडेय,जगदीश पांडेय ,शिव शंकर भाटिया, हिमांशु बिष्ट, कुशल सिंह कन्याल, जीवन धामी, नवीन बोरा, रमेश चंद्र जोशी, संतोष अग्रवाल, राहुल सक्सेना, जानकी गोस्वामी, अनिता ज्याला,अनुपम शर्मा, नीता सक्सेना, बिमला मुड़ेला ,प्रेमा महर ,सावित्री कन्याल,चंचल सिंह खोलिया, पूरन चंद्र जोशी, संतोष गौरव, भगवान जोशी, पूरन बिष्ट, नवीन भटट, दिनेश गुरूरानी, दिगंबर सती, उमेश पंत, कमला जोशी, प्रेम सिंह रावत, नरेश चंद, जगत मनौला, भाष्कर चिल्कोटी समेत खासी तादात में लोग मौजूद रहे।

उत्तराखंड में हर साल सितंबर महीने की शुरुआत दर्दभरे पुराने जख्मों को हरा कर देती है। साल 1994 में आज के रोज राज्य आंदोलन के दौरान हुए खटीमा गोलीकांड हुआ था। तत्कालीन उत्तर प्रदेश की पुलिस ने आंदोलनकारियों पर बर्बरता से गोलीयां चलाई। जिसमें शांतिपूर्ण सत्याग्रह कर रहे 7 आंदोलनकारी शहीद हो गए थे।

दरअसल, उस दौरान UP से अलग राज्य बनाने की मांग को लेकर पूरे पहाड़ में आंदोलन परवान चढ़ रहा था। इस कड़ी में तराई के उधमसिंहनगर जिले के खटीमा में आंदोलनकारी सत्याग्रह कर रहे थे। लेकिन तत्कालीन मुलायम सरकार की गुलाम पुलिस ने उन पर क्रूरता के साथ फायरिंग झोंक दी। जिसके चलते 7 लोग शहीद हो गए थे।

1 अमर शहीद स्व० भगवान सिंह सिरौला, ग्राम श्रीपुर बिछुवा, खटीमा।

2 अमर शहीद स्व० प्रताप सिंह, खटीमा।
3 अमर शहीद स्व० सलीम अहमद, खटीमा।
4 अमर शहीद स्व० गोपीचन्द, ग्राम-रतनपुर फुलैया, खटीमा।
5 अमर शहीद स्व० धर्मानन्द भट्ट, ग्राम-अमरकलां, खटीमा
6 अमर शहीद स्व० परमजीत सिंह, राजीवनगर, खटीमा।
7 अमर शहीद स्व० रामपाल, निवासी-बरेली।

1994 के आंदोलन के दौरान यह पुलिसिया बर्बरता की यह पहली कड़ी थी। उसके ठीक अगले रोज यानी 2 सितंबर को मसूरी के झूलाघर में यही कहानी दोहराई गई। जहां पुलिस फायरिंग में 6 आंदोलनकारी शहीद हो गए थे। यानी एक सितंबर का दिन खटीमा गोलीकांड और 2 सितंबर मसूरी गोलीकांड की कड़वी यादों से जुड़ा है।

यही वजह है कि उत्तराखंड में हर साल सितंबर महीने की शुरुआत दर्दभरे पुराने जख्मों को हरा कर देती है। उस क्रूर गोलीकांड के बाद खटीमा में ‘शहीद स्मारक’ बनाया गया। इस बर्बर गोलीकांड की बरसी पर हर साल 1 सितंबर को राजनीतिक, सामाजिक कार्यकर्ता श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

1 सितंबर 1994 का ही वो काला दिन था जब हजारों आंदोलनकारी उत्तराखण्ड राज्य की मांग को लेकर खटीमा की सड़कों पर उतरे। जब वह शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन कर रहे थे उस समय अचानक उनके ऊपर गोलियों की वर्षा शुरू कर दी जिसमें 7 आंदोलनकारियों ने अपनी शहादत दी थी. इस आंदोलन में महिलाएं अपने बच्चों तक को लेकर सड़कों पर उतर आयी थीं. खटीमा गोलीकांड की आग खटीमा से लेकर मसूरी और मुजफ्फनगर तक फैल गई थी। इस खटीमा गोलीकांड में सात लोंगों की शहादत हुई और लगभग 165 से ज्यादा आंदोलनकारी गंभीर रूप से घायल भी हुए थे. महिलाओं पर भी पुलिस ने अत्याचार किये पर इन सब अत्याचारों के बावजूद भी महिलाएं इस आंदोलन में डटी रहीं।

 

खटीमा गोलीकांड के अमर शहीद।उत्तराखंड के इतिहास में आन्दोलन के दमन की यह घटना है. इस घटना में शहीद आन्दोलनकारियों के नाम हैं।

शहीद स्व श्री रामपाल, बरेली

1 सितंबर 1994 का ही वो काला दिन था जब हजारों आंदोलनकारी उत्तराखण्ड राज्य की मांग को लेकर खटीमा की सड़कों पर उतरे। जब वह शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन कर रहे थे उस समय अचानक उनके ऊपर गोलियों की वर्षा शुरू कर दी जिसमें 7 आंदोलनकारियों ने अपनी शहादत दी थी. इस आंदोलन में महिलाएं अपने बच्चों तक को लेकर सड़कों पर उतर आयी थीं. खटीमा गोलीकांड की आग खटीमा से लेकर मसूरी और मुजफ्फनगर तक फैल गई थी।

निर्माण की मांग को लेकर 1 सितंबर 1994 को खटीमा की सड़कों पर उतरे हजारों आंदोलनकारियों पर गोलियां बरसाई गई थीं। इस दौरान सात लोगों ने शहादत दी और कई लोग घायल हुए। आज भी इस दिन के आते ही आंदोलनकारियों और उनके परिजनों का दर्द छलकता है।

 

एक सितंबर 1994 का वह दिन आज भी हर उत्तराखंडी के जेहन में ताजा है। तब पुलिस ने बर्बरता की सारी हदें पार कर दी थीं। खटीमा गोलीकांड की आज 28वीं बरसी है। इस तारीख के आते ही आंदोलनकारियों और उनके परिजनों का दर्द भी छलकता है।

 

राज्य निर्माण के लिए दी थी सात लोगों ने शहादत
राज्य निर्माण के लिए शहादत देने वालों को याद करते हुए आंदोलनकारी बुधवार को शहीद स्मारक पर श्रद्धांजलि दे रहे हैं। साथ ही शहीदों के सपनों का राज्य बनाने के लिए सरकार को जगा रहे हैं। राज्य निर्माण की मांग को लेकर 1 सितंबर 1994 को खटीमा की सड़कों पर उतरे हजारों आंदोलनकारियों पर गोलियां बरसाई गई थीं। इस दौरान सात लोगों ने शहादत दी और कई लोग घायल हुए। आज भी इस दिन के आते ही आंदोलनकारियों और उनके परिजनों का दर्द छलकता है।

 

उन्होंने कहा कि राज्य निर्माण के लिए शहादत देने वालों को सच्ची श्रद्धांजलि तब होगी, जब उनके सपनों का राज्य निर्माण होगा। कहा कि आंदोलनकारियों व शहीदों के परिजनों का दर्द सरकार नहीं समझती। तभी तो इतने वर्षों बाद भी आंदोलनकारी अपनी मांगों के लिए सड़कों पर उतर रहे हैं।

खटीमा गोलीकांड ने दी थी राज्य आंदोलन निर्माण की मांग को धार
उत्तराखंड राज्य निर्माण की मांग को धार देने का काम खटीमा गोलीकांड ने किया। एक सितंबर का दिन राज्य के लोगों के दिलों में खटीमा कांड के जख्मों को ताजा कर देता है। और अगले ही दिन दो सितंबर को मसूरी कांड की यादें उन जख्मों को और भी पीड़ादायक बना जाती है। खटीमा गोलीकांड की खबर ने कुछ समय के लिए लोगों को परेशान किया, लेकिन अलग राज्य की मांग का जुनून लोगों पर सवार था। अपनों की शहादत को व्यर्थ नहीं जाने देने का संकल्प लेकर आंदोलनकारी आगे बढ़े और दमनकारी नीति का विरोध करते हुए राज्य निर्माण की मांग के लिए और मजबूत से लड़ा।

खटीमा गोलीकांड से शुरू हुआ शहादत का सिलसिला: दान सिंह रावत।

राज्य आंदोलनकारी दान सिंह रावत बताते है कि उत्तराखंड राज्य निर्माण की मांग को लेकर चल रहे आंदोलन में शहादत का सिलसिला खटीमा गोलीकांड से ही शुरू हुआ। इसके बाद हमारे कई भाईयों ने राज्य के लिए शहादत दी, उस दिन भड़की आग फिर अलग राज्य लेकर हुई शांत:राज्य आंदोलनकारी ने बताया कि खटीमा गोलीकांड के बाद भड़की आग अलग राज्य लेकर ही शांत हुई।

तत्कालीन छात्रसंघ अध्यक्ष रमेश चन्द्र जोशी “रामु भइया”

छात्र 27 प्रतिशत मंडल आयोग की सिफारिशों के विरोध करते करते यह राज्य आंदोलन में तब्दील हो गया राज्य की मांग पूर्व से ही थी।मंडल कमीशन आयोग के सिफारिशों के बाद पृथक राज्य मांग ने जोर पकड़ लिया। युवाओं का नेतृत्व करने वाले छात्र संघ ने इस आंदोलन में बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जिसके चलते सर्व प्रथम नेताओं को फतेहगढ़ जेल मे 28 दिन कैद में रखा दमनकारी नीति के खिलाफ आंदोलनाकारियों ने घुटने नहीं टेके। शहादत दी, लेकिन झुकने को तैयार नहीं हुए। लोगों के दिलों में बस एक ही बात थी कि उन्हें हर हाल में अपना राज्य चाहिए। महिला, छात्र, बच्चे सभी सड़कों पर हक की लड़ाई लड़ने के लिए निकले थे, लेकिन पुलिस ने जो बर्बरता दिखाई उसे कभी भूला नहीं जा सकता।

 

एक सितंबर 1994 को उत्तराखण्ड राज्य की मांग को लेकर खटीमा की सड़कों पर उतरे हजारों आंदोलनकारियों पर बरसी गोलियों को 22 बरस हो गए हैं. पृथक उत्तराखंड की मांग को लेकर खटीमा गोलीकांड में 7 आंदोलनकारियों ने अपनी शहादत दी थी. इतने त्याग के बावजूद जो उत्तराखंड मिला क्या वह शहीदों के सपनों का उत्तराखंड है?

1 सितम्बर, 1994 की सुबह खटीमा में हमेशा की तरह एक सामान्य सुबह की तरह शुरू हुई. लोगों ने अपनी दुकानें खोली थी. सुबह दस बजे तक बाजार पूरा खुल चुका था. तहसील के बाहर वकील अपने-अपने टेबल लगा कर बैठ चुके थे.
(Khatima Goli Kand 1994)

आज खटीमा में सरकार की गुंडागर्दी के विरोध में प्रदर्शन किया जाना था सो करीब आठ-साढ़े आठ बजे से ही रामलीला मैदान में लोगों ने जुटना शुरू किया था. साढ़े दस होते-होते दस हजार लोगों की भीड़ जमा हो चुकी थी.

इसमें युवा, पुरुष, महिलायें और पूर्व सैनिक शामिल थे. महिलाओं ने अपनी कमर में परम्परा के अनुसार दरांती बांध रखी थी तो पूर्व सैनिकों में कुछ के पास उनके लाइसेंस वाले हथियार थे. रामलीला मैदान से सरकार का विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ.

भीड़ में तेज आवाज में सरकार विरोधी नारे लगते. सितारागंज रोड से होता हुआ जुलूस तहसील की ओर बढ़ा. यह जुलूस दो बार थाने के सामने होकर गुजरा था. पहली बार में जन जुलूस थाने के आगे से निकला तो युवाओं ने खूब जोर-शोर से नारेबाजी की.
(Khatima Goli Kand 1994)

जुलूस का नेतृत्व कर रहे पूर्व सैनिकों को जब लगा कि युवा उत्तेजित हो रहे हैं तो उन्होंने भीड़ को संभाल लिया. इस तरह आन्दोलन पूरी तरह शांतिपूर्ण तरीके से चल रहा था. दूसरी बार जब जुलूस के आगे के लोग तहसील के पास पहुंच गये थे और पीछे के लोग थाने के सामने थे, तभी थाने की ओर से पथराव किया गया और कुछ ही देर में आस-पास के घरों से भी पथराव शुरू हो गया.

यह देखते ही पुलिस ने बिना किसी चेतावनी के लोगों पर गोलियां चलाना शुरू कर दिया. अगले डेढ़ घंटे तक पुलिस रुक-रूककर गोली चलाती रही. अचानक हुई इस गोलीबारी से भीड़ में भगदड़ मच गयी. जिसमें आठ लोगों की मृत्यु हो गयी और सैकड़ों घायल हो गये।

पुलिस की गोलियों से कुछ लोगों की मृत्यु हो गयी तो पुलिस ने चार लाशों को उठाकर थाने के पीछे एलआईयू कार्यालय की एक कोठरी में छुपा दिया. देर रात के अंधेरे में चारों शवों को शारदा नदी में फेंक दिया. घटना स्थल से बराबद अन्य चार शवों के आधार पर पुलिस ने अगले कई सालों तक मारे गये लोगों की संख्या केवल चार बताई.
(Khatima Goli Kand 1994)

पुलिस ने लगभग साठ राउंड गोली चलाई. पुलिसवालों ने तहसील में जाकर वकीलों के टेबल जला दिये और वहां जमकर तोड़फोड़ मचा दी. पुलिस ने अपने काम को सही ठहराने के लिए तर्क दिया कि पहले आन्दोलनकारियों की ओर से गोली चलाने के कारण उन्हें जवाबी कारवाई करनी पड़ी. अपने तर्क को मजबूती देने के लिए पुलिस ने महिलाओं द्वारा कमर में दरांती का खूँसा जाना और पूर्व सैनिकों का लाइसेंस वाली बंदूक का अपने पास रखे होने का बहाना दिया. आज भी महिलाओं की दरांती और पूर्व सैनिकों की लाइसेंस वाली बंदूक को खटीमा गोलीकांड में गोली चलाने के कारण के रूप में पुलिस गिनाया करती है. खटीमा गोलीकांड में एक भी पुलिस वाले के शरीर में न तो किसी गोली के निशान मिले ना ही दरांती के.निशान लेकिन बेबश आंदोलन कारीयों को निर्ममता से मारा गया।

uttarakhandlive24
Author: uttarakhandlive24

Harrish H Mehraa

Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

[democracy id="1"]

Big Breaking टनकपुर- पिथौरागढ़ में सेना भर्ती के लिए तमाम राज्यों से पहुंची युवाओं की भारी भीड़,युवाओं कि भीड़ देख प्रशासन के छूटे पसीने,रात में किया 40 बसों का इंतजाम,खचाखच भरी बसें, कई पैदल ही निकले।