सोरघाटी पिथौरागढ़ के मोस्टमानू में 6 दिवसीय दिव्य व भव्य मेले व विकाश प्रदर्शनी 2023 में उमड़ा जन सैलाब।
पिथौरागढ़ ( उत्तराखंड) प्रदेश की महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास ,खाद्य , नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामले ,खेल एवं युवा कल्याण मंत्री रेखा आर्या ने पिथौरागढ़ के मोस्टमानू में स्थित मोष्टा देवता मंदिर परिसर में आयोजित 6 दिवसीय मोस्टमानू मेला एवं विकास प्रदर्शनी- 2023 के दूसरे दिवस में आयोजित कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि प्रतिभाग किया। मंत्री रेखा आर्या ने मेले में आयोजित होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलित कर किया।
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मंत्री रेखा आर्या ने मोष्टा देवता को प्रणाम करते हुए कहा कि मोष्टा देवता का परिचय वर्षा के देवता के रूप में है। जब भी पिथौरागढ़ की जनता ने वर्षा की मांग की है। मोष्टा देवता ने वर्षा जल बरसाया है। मोस्टमानू मंदिर केवल पिथौरागढ़ वालों के लिए आस्था का केंद्र नहीं है बल्कि पूरी देवभूमि के लिए आस्था का केंद्र है।
मंत्री श्रीमती आर्या ने कहा कि मेरा जब भी पिथौरागढ़ में आगमन होता है तो यहां के लोगों के द्वारा मेरे साथ खेल और खिलाड़ियों के संबंध में संवाद किया जाता है। मुझे प्रसन्नता है कि यहां लड़के और लड़कियां दोनों ही खेल के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रयास कर रहे हैं। मंत्री श्रीमती आर्या ने खिलाड़ियों के लिए बनाई गई योजनाओं की जानकारी देते हुए कहा कि हमारी सरकार खिलाड़ियों के उन्नयन के लिए अनेक प्रोत्साहन योजनाएं चला जा रही हैं।
हम खिलाड़ियों के भविष्य को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से काम कर रहे हैं! उन्होंने बाल विकास एवं महिलाओं के कल्याण के लिए चलाई जा रही योजनाओं की भी जानकारी दी।इससे पूर्व मंत्री रेखा आर्या द्वारा मोष्टा देवता मंदिर में मोष्टा देवता की पूजा अर्चना कर जनपद एवं प्रदेश की खुशहाली की मंगल कामना की गयी। वहीं विभिन्न विभागों द्वारा लगाये गये स्टालों का स्थलीय निरीक्षण भी किया गया।
इस अवसर पर जिलाध्यक्ष गिरीश जोशी , जिला पंचायत अध्यक्षा श्रीमती दीपिका बोहरा , पूर्व विधायक पिथौरागढ़ श्रीमती चंद्रा पन्त, नगर पालिका अध्यक्ष राजेन्द्र रावत , संयोजक मेला समिति बिरेन्द्र बोहरा , जिला पंचायत उपाध्यक्ष कोमल मेहता , जिला महामंत्री राकेश देवलाल , युवा मोर्चा जिलाध्यक्ष हरीश रावत , जिला पंचायत सदस्य राजेन्द्र मेहरा , दिवाकर रावल , सतीश जोशी ,अनुसूचित मोर्चा जिलाध्यक्ष मनोज सोरलेख ,महिला मोर्चा अध्यक्ष श्रीमती प्रमीला बोहरा सहित समस्त मेला समिति के सदस्य,आदि उपस्थित रहे।
मौष्टामाणू का मेला का संक्षिप्त परिचय
पिथौरागढ़ जनपद मुख्यालय के चतुर्दिक फैले ग्रामीण क्षेत्रों में तीन प्रसिद्ध मेलों का प्रतिवर्ष आयोजन किया जाता है । भाद्रपद की गणेश चतुर्थी को ध्वज नामक पहाड़ की चोटी पर देवी मेला लगता है । इसके दूसरे दिन हरियाली तृतीया को किरात वेश में रहने वाले भूमि के स्वामी केदार नाम से पूजित शिव के मंदिर स्थल केदार में मेला लगता है । थल केदार जनपद मुख्यालय से ११ कि.मी. दक्षिण पूर्व में नौ हजार फुट की ऊँचाई पर स्थित है । तीसरे दिन ॠषि पंचमी को पिथौरागढ़ से ६ कि.मी. की दूरी पर लगभग छ: हजार फुट की ऊँचाई पर इस जिले का प्रसिद्ध और दर्शनीय मेला सम्पन्न होता है । यह मेला मौष्टामाणू का मेला कहलाता है।
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मोष्टामाणू का मंदिर पिथौरागढ़ नगर के पास पश्चिम-उत्तर दिशा में एक ऊँची चोटी पर स्थित है । मोष्टामाणू शब्द का अर्थ है – मोष्टादेवता का मंडप । लोक जगत में विश्वास है कि मोष्टादेवता जल वृष्टि करते हैं । वे इन्द्र के पुत्र हैं । मोष्टा की माता का नाम कालिका है । वे भूलोक में मोष्टा देवता के ही साथ निवास करती हैं । इन्द्र ने पृथ्वी लोक में उसे भोग प्राप्त करने हेतु अपना उत्तराधिकारी बनाया । दंत कथाओं में कहा जाता है कि इस देवता के साथ चौंसठ योगिनी, बावन वीर, आठ सहस्र मशान रहते हैं । ‘भुँटनी बयाल’ नामक आँधी तूफान उसके बस में हैं । मोष्टा देवता के रुष्ट हो जाने पर वे सर्वनाश कर देते हैं । वह बाइस प्रकार के वज्रों से सज्जित है।
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माता कालिका और भाई असुर देवता के सहयोग से वह नाना प्रकार से असंभव कार्यों को सम्पादित करता है । मोष्टा और असुर दोनों के सामने बलिदान नहीं होता परन्तु उनके सेवकों के लिए भैंसे और बकरे का बलिदान किया जाता है।मोष्टा को नागदेवता माना जाता है । उनकी आकृति मोष्टा या निंगाल की चटाई की तरह मानी गयी है । उन्हें विषों से युक्त नाग माना जाता है । इसलिए जो लोग नागपंचमी को नागदेवता की पूजा नहीं कर पाते वे मेले के दिन यहाँ आकर उनका पूजन सम्पन्न कर लेते हैं।
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खटीमा मझराफार्म में बसे सौर घाटी पिथौरागढ के लोगों ने भव्यता से मनाया हिलजात्रा लोकपर्व।
मेले के अवसर पर मोष्टा देवता का रथ निकलता है । इसे जमान कहते हैं । लोग इसके दर्शन के लिए दूर-दूर से आते हैं इस मेले का व्यापारिक स्वरुप भी है । स्थानीय फल फूल के अतिरिक्त किंरगाल की टोकरियाँ, चटाइयाँ, कृषियंत्रों काष्ठ बर्तनों तथा तरह-तरह की वस्तुओं की खरीद फरोख्त होती है।मेले में लोक गायक ओर नर्तक भी पहुँचते हैं । हुड़के की थाप पर नृत्यों की महफिलें सजती हैं, गायन होता है । शाम होते-होते मेले का समापन होता है । वर्तमान में सरकारी विभाग भी अपने-अपने कार्यक्रमों का प्रचार-प्रसार के लिए मेले का उपयोग करते है।
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मेले में लोक कलाकारों ने विभिन्न रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रमों से उपस्थित जन समूह का आनन्दित किया जाता है।निश्चित ही जिस प्रकार से कुंभ मेला प्रसिद्ध है ठीक उसी तरह से पिथौरागढ़ का मोस्टामानू का यह दिव्य व भव्य मेला भी पिथौरागढ़ का कुंभ मेला ही है।अगर आज हम सबको अपनी संस्कृति को बचाना है तो ऐसे मेलो का आयोजन किया जाना बेहद आवश्यक है।यही पौराणिक मेले हमारी संस्कृति के संरक्षण व संवर्धन का काम करते हैं।
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Author: uttarakhandlive24
Harrish H Mehraa