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खटीमा मझराफार्म में बसे सोर घाटी पिथौरागढ के लोगों ने भव्यता से मनाया विरासत का प्रतीक हिलजात्रा लोकपर्व, -लखिया भूत ने धन, धान्य और सुख समृद्धि का दिया आर्शीवाद ।

खटीमा मझराफार्म में बसे सोर घाटी पिथौरागढ के लोगों ने भव्यता से मनाया विरासत का प्रतीक हिलजात्रा लोकपर्व, -लखिया भूत ने धन, धान्य और सुख समृद्धि का दिया आर्शीवाद ।

खटीमा,(उधम सिंह नगर)  खटीमा के मझरा फार्म में सोर घाटी के लोगों ने हिलजात्रा पर्व का भव्य आयोजन किया। यहां हिलजात्रा का आयोजन 1976 से किया जा रहा है। तैयारी नागपंचमी के दिन से शुरू हो जाती है। उस दिन पंच अनाज को भिगोकर सप्तमी एवं अष्टमी को गौरा/महेश्वर की प्रतिमाओं का निर्माण कर उनकी विधिवत पूजा की जाती है।

हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी विद्यालय प्रांगण में हिलजात्रा का आयोजन धूमधाम से किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथि वरुण अग्रवाल ने फीता काटकर किया। दशकों पहले सोर घाटी को छोड़कर ऊधमसिंह नगर के खटीमा इलाके में बसे मझरा फार्म गांव के लोग तराई में हिलजात्रा पर्व मनाकर अपनी धार्मिक व सांस्कृतिक विरासत को बचाने का काम कर रहे हैं।

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हिलजात्रा पर्व में जहां ग्रामीणों द्वारा बैलों के जोड़ों और नंदी बैल का स्वांग रचकर दर्शकों के सामने खेल लगाये जाते हैं। वही महिलायें गोल घेरे में खेल लगाकर अपने धार्मिक गीतों को गाकर इस पर्व में शिरकत करती हैं। इस पर्व में पर्वतीय वाद्य यंत्रों हुडका, ढोल, दमुआ आदि को भी बजाया जाता है। हिलजात्रा कार्यक्रम की पूर्व संध्या में झोड़ा चांचरी के साथ ही गल्या बल्द (नटखट नंदी) के अभिनय के साथ शुरू होता है। अगले दिन सबसे पहले झाडू लगाने के अभिनय के साथ ही बीज बोने, दही बांटने के साथ शुरू होता है।

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हिरण-चीतल का अभिनय कर भगवान शिव-पार्वती को प्रसन्न करने की आकांक्षा के साथ झोड़ा-चांचरी के सामूहिक गायन व नृत्य के साथ ही गौरा-महेश्वर के डोले के विसर्जन के साथ समापन होता है।

उत्तराखण्ड में कुमाँऊ की अपनी अलग ही सास्कृतिक धरोहरें है जो कि आज भी कुमाँऊ के पर्वतीय अंचलों में मनाये जाने वाले धार्मिक आयोजनों में साफ देखी जा सकती है। इन्ही सास्कृतिक आयोजनों में से एक है हिलजात्रा पर्व जो कि मुख्य रूप से जंहा पिथौरागढ जनपद में मनाया जाता है।

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लेकिन कई साल पहले उधम सिह नगर जनपद के तराई इलाके खटीमा में बसे सौर घाटी पिथौरागढ के लोग हिलजात्रा पर्व मना कर अपनी सास्कूतिक व धार्मिक धरोहरों को बचाये हुए है। पेश है खटीमा के मजरा फार्म गाॅव से Uttarakhand live 24 के लिए हरीश एच मेहरा की हिलजात्रा पर्व पर एक खास रिपोर्ट-

मझरफार्म मैं हिलजात्रा 1976 से मनाई जाती रही है जो निरंतर जारी है। हिलजात्रा के आयोजन की तैयारी नागपंचमी के दिन से सुरु हो जाती है उस दिन पंच अनाज को भिगो कर सप्तमी एवम अष्टमी को गौरा/महेष्वर की प्रतिमाओ का निर्माण कर उनकी विधिवत पूजा की जाती है .फिर हिलजात्रा के एक दिन पूर्व गल्या ब्लद के अभिनय से हिलजात्रा प्रारम्भ होती है…जो गल्या बलद..नेपाली ब्लद..पूतारी…मछली आखेट.. खेती.बॉडी.. घोड़े के अभिनय के साथ ही बंदर ..बाबा …दही बांटने ..एवम बीज छिड़कने के साथ ही गौरा के विसर्जन पर सम्पन्न होती है।

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हिल-जात्रा। एक ऐसा पर्व जो जितना पुरातन है उनका ही खास भी है। किसानों का पर्व है हिल-जात्रा।किसानों के इस पर्व में हर पात्र खेती से जुड़ा होता है। ये कोई साधारण जात्रा नहीं है। पहाड़ के किसानों की यात्रा है। पहाड़ की समृद्ध संस्कृति की यात्रा है। बेहद शानदार हिल-जात्रा देखने लोगों का हुजूम यूं ही नहीं उमड़ता…

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तराई के खटीमा विकास खंड में मजरा फार्म गांव में भादो माह में मनाया जाने वाला हिलजात्रा उत्तराखंड का प्रमुख मुखौटा नृत्य है। हिलजात्रा का शाब्दिक अर्थ कीचड़ का खेल है। हिल का शाब्दिक अर्थ दलदल यानि पानी वाली दलदली भूमि और जात्रा का अर्थ खेल, तमाशा या यात्रा है। जिसका सीधा तात्पर्य पानी वाले दलदली भूमि में की जाने वाली खेती और खेल का मंचन है।

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सोरघाटी के लोगों द्वारा तराई के खटीमा विकास खंड के मजरा फार्म गांव में इसे एक उत्सव के रूप में मनाया जाता है।ढोल और नगाड़ों की गूंज भी सुनाई पड़ेगी। इस हिल-जात्रा में अपको हर वो पारंपकिर संस्कृति की झलक देखने को मिलेगी, जिसे लोग अब छोड़ देना चाहते हैं। लेकिन, हिल-जात्रा एक ऐसा आयोजन है, जो बिसरी परंपराओं को चाहने के बावजूद भी बिसरने नहीं देता।

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मुखौटों के साथ होने वाले इस उत्सव में लोक जीवन के साथ आस्था और हास्य भी है। मुख्य पात्रों की भूमिका पुरुष निभाते हैं। लखिया भूत इस उत्सव का मुख्य पात्र है। लखिया भूत को भगवान शिव का गण माना जाता है। लखिया के हिल-जात्रा आयोजन मैदान में आने के बाद पूरे उत्सव पर आस्था का रंग चढ़ जाता है। लखिया भूत धन, धान्य और सुख समृद्धि का आर्शीवाद देता है।

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उत्तराखण्ड में मनाये जाने वाले धार्मिक आयोजनो के अपने अनुठे रंग है। इन धार्मिक आयोजनों में जंहा उन इलाको की सास्कृतिक झलक देखने को मिलती है वही कृषि पर आधारित पर्वतिय समाज को भी ये आयोजन परिलक्षित करते है। कुमाँऊ की संस्कृति में ऐसा ही एक धार्मिक आयोजन मनाया जाता हिलजात्रा पर्व। इस पर्व को जंहा मुख्य रूप से सीमान्त जनपद पिथौरागढ के लोगों द्वारा मनाया जाता है।

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लेकिन कई दशकों पहले सोर घाटी के रूप में जाने जाने वाले पिथौरागढ को छोड कर उधम सिह नगर जनपद के खटीमा इलाके में बसे मजराफार्म गाॅव के लोग आज भी तराई इलाके में भी हिलजात्रा पर्व मना कर अपनी धार्मिक व सास्कृतिक विरासत को बचाने का काम कर रहे है। खटीमा में मनाये जाने वाले हिलजात्रा पर्व के आयोजन में जंहा ग्रामिण द्वारा बैंलो के जोडों व नन्दी बैंल का स्वाग रच कर ग्रामिण दर्षकों के सामने खेल लगाये जाते है वही महिलायें गोल घेरे में खेल लगा कर अपने धार्मिक गीतों को गाकर इस पर्व में शिरकत करती है। वही इस पर्व में पर्वतीय वाद्यय यंत्रों हुडका,ढोल,दमुआ आदि को भी बजाया जाता है। हिलजात्रा पर्व को मनाने के पीछे ग्रामिणो का कहना है कि खटीमा के मजराफार्म गाॅव में सन् 1976 से हिलजात्रा पर्व का धार्मिक आयोजन उनके द्वारा किया जा रहा है।

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इस पर्व को मनाने के पीछे यह किदवंती है की माॅ महाकाली द्वारा जब संभू निसंभू दैत्यो का संहार किया गया था तब शिव भगवान के नन्दी बैल व उनके वीरों ने इसी तरह स्वाग रच कर महाकाली के साथ दैत्यों का वध करने में सहायता की थी। वही दुसरी ओर इस पर्व के माध्यम से वह अपने द्वारा उगाये गये अनाज का पहला भोग भी भगवान को अर्पित करते है। वही इस आयोजन में प्रतिभाग करने वाले युवा भी ऐसे धर्मिक आयोजनों के माध्यम से अपने धर्मिक व सास्कृतिक विरासतों को समझने व उसने जुडने का बेहतर माध्यम बताते है।

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खटीमा के सीमान्त गाॅव के लोग जंहा हिलजात्रा पर्व के माध्यम से जंहा अपनी सस्कृति को जीवित रखने का प्रयास कर रहे है वही इस तरह के आयोजनों को युवाओ व नोनीहालों के लिए अपनी सस्कृति से जुडने व उसकों जानने का बेहतर माध्यम मान रहे है। वही ग्रामिणों द्वारा आयोजित हिजजात्रा पर्व के आयोजन की भी सराहना कर रहे है।

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बहरहाल एक ओर जंहा आज का समाज अपनी सास्कृतिक मृल्यो से दूर होता जा रहा है। वही पर्वतिय अंचलों को छोड कर तराई में बसे लोगों द्वारा आज भी अपनी धार्मिक व सास्कृतिक विरासतों को इस तरह के आयोजनों के माध्यम से जंहा सहेजने का काम किया जा रहा है वह निष्चित ही काबिले तारिफ है। ओर निष्चित रूप से इस तरह के आयोजन आज के युवाओं व नोनिहालों को अपनी सस्कृति को समझने व उससे जुड़े रखने में सहायक सिद्व होगें।

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इस अवसर पर हिलजात्रा कमेटी के अध्यक्ष कैप्टन गणेश दत्त  चौसाली, सचिव बीएस बोहरा, कैलाश भट्ट, कैलाश सिंह चड्डा, हरीश कन्याल , कमल उपरारी , भूपेंद्र सिंह बोहरा , कमल सिंह बोहरा , रुस्तम राणा ग्राम प्रधान, नारायण सिंह बोहरा , युवराज सिंह बिष्ट , दया किशन फुलेरा , लक्ष्मण सिंह परिहार, रवि नेगी , बसंत सिंह सामंत ,चंदन सिंह जोरा, राजेंद्र सिंह बोहरा ,ठाकुर सिंह परिहार , विनोद सिंह परिहार,

 

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मजरफार्म हिलजात्रा कमेटी मैं विशेष योगदान वरिष्ठ रंगकर्मी जगत सिंह बोहरा, हरीश कन्याल,रमेश कन्याल,विनोद परिहार, भूपेंद्र बोहरा, कमल उपरारी, राहुल बेलाल, गंगा सागर भट्ट, रविन्द्र वल्दिया, .केशवदत्त भट्ट, हरिनंदन भट्ट, कैलाश भट्ट,  प्रदीप चौसाली,  प्रकाश इकराल, राजेन्द्र बोहरा,  रविंदर रावत, ,लछ्मण वल्दिया, रब्बू वल्दिया ,प्रताप सौंन, दीपक सिरौला, दीवान बोहरा,  आदि लोगों ने प्रतिभाग एवं सहयोग किया।

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uttarakhandlive24
Author: uttarakhandlive24

Harrish H Mehraa

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