उत्तराखंड के कुमाऊं में धूम धाम से मनाया जाता है घुघुतिया त्यार,मकर संक्रांति में गंगा स्नान का विशेष महत्त्व। जानिए क्या है परंपरा।
खटीमा ( उधम सिंह नगर )उत्तराखंड में घुघुतिया त्यार का बहुत अधिक महत्त्व है।इस दिन पवित्र नदियों में स्नान किया जाता है। साथ ही दान पुण्य का भी विशेष महत्व है।उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में मकर संक्रांति के पर्व को घुघुतिया त्यौहार कहते हैं. घुघुतिया त्यौहार यहाँ धूमधाम से मनाया है. इस दिन कुछ विशेष पकवान भी बनाए जाते हैं..
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मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर में प्रवेश करता है। गांवों से निकलकर अन्य शहरों में रह रहे लोग भले ही अपनी माटी से भले दूर हो गए हों, लेकिन घुघुतिया त्यार मनाने की परंपरा आज भी वही है। इस दिन घुघुति जो कि उत्तराखंड का विशेष पक्षी है उसी के आकार में आटे और गुड़ का पकवान बनाया जाता है जिसे घुघुता कहते हैं। घुघुतिया या मकर संक्रांति के अगले दिन बच्चे काले कौआ घुघुती माला खाले की आवाज लगाकर कौए को बुलाते हैं और उसे यह पकवान खिलाते हैं।
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बागेश्वर से चम्पावत व पिथौरागढ़ जिले की सीमा पर स्थित घाट से होकर बहने वाली सरयू नदी के पार (पिथौरागढ़ व बागेश्वर निवासी) वाले मासांत को यह पर्व मनाते हैं। जबकि शेष कुमाऊं में इसे संक्रांति के दिन मनाया जाता है। गांवों से निकलकर हल्द्वानी व दूसरे शहरों में बस गए लोग अपनी माटी से भले दूर हो गए हों, लेकिन घुघुतिया त्यार मनाने की परंपरा आज भी वही है। घुघुतिया के दूसरे दिन बच्चे काले कौआ, घुघुती माला खाले की आवाज लगाकर कौए को बुलाते हैं।
नई पीढ़ी को अपनी संस्कृति, रीति-रिवाज से परिचित कराना हमारी ही जिम्मेदारी है। बच्चे हमारी देखा-देखी सीखते हैं। आज भी प्रत्येक स्वजन, रिश्तेदारों के लिए घुघुते की माला बनती है। यह जरूर है कि शहर में कौए नहीं दिखने से गाय पहले घुघुते खिलाने लगे हैं।
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कौए नहीं तो कुत्ते को खिलाने हैं घुघुते
पिथौरागढ़ जिले के बेरीनाग से 1991 में हमारा परिवार हल्द्वानी आ बसा। पहाड़ हमारी रग-रग में बसा है। नई पीढ़ी को अपनी संस्कृति, रीति-रिवाज से परिचित कराना हमारी ही जिम्मेदारी है। बच्चे हमारी देखा-देखी सीखते हैं। आज भी प्रत्येक स्वजन, रिश्तेदारों के लिए घुघुते की माला बनती है। यह जरूर है कि शहर में कौए नहीं दिखने से गाय, कुत्ते को पहले घुघुते खिलाने लगे हैं।
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मांगलिक कार्यों की होगी शुरुआत
मकर संक्रांति के साथ खरमास खत्म हो जाएगा। इसके बाद मांगलिक कामों की शुरुआत होगी। स्थानीय पंचांगों में विवाह मुहूर्त की शुरुआत 22 जनवरी से होगी। डा.पी सी पाण्डेय ने बताया कि इस बार शादियों के लिए मई में सबसे ज्यादा 14 मुहूर्त होंगे। 2022 में वसंत पंचमी, अक्षय तृतीया व देवउठनी अबूझ मुहूर्त को मिलाकर शादियों के लिए 48 श्रेष्ठ मुहूर्त रहेेंगे। हालांकि कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए लोग डरे हुए हैं।
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वर्ष 2022 के विवाह मुहूर्त
जनवरी: 22 व 23
फरवरी: 5, 6, 7, 9, 10, 18, 19, 20, 22
अप्रैल: 16, 19, 20, 21, 22, 23, 24
मई: 2, 3, 9, 10, 11, 12, 16, 17, 18, 20, 21, 26, 27, 31
जून: 1, 6, 8, 10, 11, 21, 23
जुलाई: 3, 5, 7, 8
दिसंबर: 2, 4, 7, 8, 9
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Author: uttarakhandlive24
Harrish H Mehraa