श्रवण कुमार बन बहू हापुड़ से पहुंचे हरिद्वार, बुजुर्ग सास को पालकी में बैठाकर 200 किमी की कांवड़ यात्रा कर बहू ने पेश की मिशाल, सास बहू का प्रेम हुआ अमर।

श्रवण कुमार बन बहू हापुड़ से पहुंचे हरिद्वार, बुजुर्ग सास को पालकी में बैठाकर 200 किमी की कांवड़ यात्रा कर बहू ने पेश की मिशाल, सास बहू का प्रेम हुआ अमर।

 

हरिद्वार-( उत्तराखंड) : सावन का महीना सिर्फ गंगाजल लाने और धार्मिक आस्था के लिए नहीं, बल्कि सेवा, समर्पण और भावनात्मक जुड़ाव का भी प्रतीक बनता जा रहा है। ऐसी ही एक मिसाल पेश की है उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले की रहने वाली आरती ने, जो अपनी बुजुर्ग सास ऊषा देवी को गंगा स्नान करवाने और गंगाजल लाने के लिए 200 किलोमीटर लंबी पैदल यात्रा कर रही हैं।—और वह भी उन्हें पालकी में बैठाकर।

इस अनोखी यात्रा में आरती अकेली नहीं हैं। उनके साथ उनकी बेटी लवी, भतीजा हिमांशु और भतीजी राशि भी इस सेवा भाव से भरी यात्रा में कदम से कदम मिला रहे हैं। हरिद्वार की हरकी पैड़ी से गंगाजल लेकर वे अपने गंतव्य की ओर बढ़ रहे हैं, लेकिन साथ में बुजुर्ग सास को पालकी में बिठाकर ले जाना इस यात्रा को खास बना रहा है।

सेवा और श्रद्धा का अनूठा संगम

आरती ने बताया कि यह यात्रा सिर्फ धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उनके लिए अपने बुजुर्गों के प्रति कर्तव्य और सम्मान की अभिव्यक्ति भी है। उनका मानना है कि आज के समय में जब कई लोग अपने माता-पिता या सास-ससुर की देखभाल से कतराते हैं, वहां सेवा भाव ही सच्ची भक्ति है।

“श्रवण कुमार सिर्फ बेटा ही नहीं, बहू भी बन सकती है। मैंने सिर्फ वही किया जो मेरे दिल ने सही समझा,” – आरती ने कहा।

लोगों को मिला संदेश

इस यात्रा को देखकर रास्ते में कई लोग रुके, नम आंखों से इस दृश्य को देखा और आरती के साहस व सेवा भावना की सराहना की। सोशल मीडिया पर भी आरती की तस्वीरें और वीडियो वायरल हो रही हैं। कई लोगों ने इसे “नारी शक्ति और भारतीय संस्कृति” का बेहतरीन उदाहरण बताया।

क्या है कांवड़ यात्रा?

सावन के महीने में शिवभक्त गंगाजल लेने के लिए हरिद्वार, गंगोत्री जैसे स्थानों पर जाकर पैदल यात्रा करते हैं। इस दौरान वे ‘कांवड़’ में गंगाजल भरकर अपने घर या किसी शिव मंदिर तक ले जाते हैं। यह यात्रा न सिर्फ धार्मिक भावना का प्रतीक है, बल्कि इसमें अनुशासन, सेवा, त्याग और आत्मिक शुद्धि भी शामिल है।

हापुड़ की आरती ने यह साबित कर दिया कि श्रद्धा और संस्कार अगर दिल से हों, तो कोई भी रिश्ता ममता और सेवा से भरा जा सकता है। उनकी यह यात्रा सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि समाज को सम्मान, सेवा और सहृदयता का सशक्त संदेश है।

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