उत्तराखंड में UKSSSC पेपर लीक मामले में “CBI जांच पर राजनीति: जिनके कार्यकाल मे बेरोजगार ने की आत्महत्या, औरों को नसीहत, खुद मियां फजीहत” युवाओं से सहानुभूति या “धामी से अदावत ?”
देहरादून। उत्तराखंड की राजनीति में एक बार फिर “घोटालों की CBI जांच” चर्चा के केंद्र में है। पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पेपर लीक घोटाले की सीबीआई जांच की मांग की है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि जब वह खुद मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने क्यों कदम पीछे खींच लिए थे?
जब 2022 में हाकम सिंह पहली बार पकड़ा गया था, तब त्रिवेंद्र सिंह रावत जी ने सीबीआई जांच क्यों नहीं कराई?
जब NH-74 का 600 करोड़ का घोटाला सामने आया, तब सीबीआई जांच की मांग पर क्यों बैकफुट पर आ गए?
जब छात्रवृत्ति घोटाले ने युवाओं के भविष्य पर चोट की, तब वह कितने संवेदनशील थे?
राजनीतिक हकीकत यह है—
CBI जांच किसी नेता के बयान से नहीं, बल्कि सरकार की संस्तुति, कोर्ट के आदेश या केंद्र सरकार के निर्देश से होती है।
सिर्फ बयान देकर सीबीआई जांच नहीं कराई जा सकती, वरना NH-74 और छात्रवृत्ति जैसे घोटाले कब के CBI के हवाले हो चुके होते।
त्रिवेंद्र सरकार की “वापसी यात्रा”
2017 में जब भाजपा सत्ता में आई तो विधानसभा सत्र में त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बाकायदा वादा किया था कि NH-74 घोटाले की सीबीआई जांच कराई जाएगी। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से 19 मई 2017 के बाद शासन की फाइल पर एक हस्ताक्षर तक नहीं हुआ। आरटीआई में खुले दस्तावेज साफ बताते हैं कि किसी दबाव के बाद सीबीआई जांच का प्रस्ताव ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।
यही नहीं, वन दरोगा भर्ती घोटाले से निराश एक बेरोजगार अभ्यर्थी ने आत्महत्या तक कर ली थी, लेकिन तब भी सरकार ने केवल “एसआईटी जांच” तक खुद को सीमित रखा।
हाकम सिंह और “हेलीकॉप्टर राजनीति”
त्रिवेंद्र कार्यकाल का एक चर्चित किस्सा आज भी लोगों को याद है—
प्रसूता सड़क पर बच्चे को जन्म देने को मजबूर रही,
लेकिन हाकम सिंह की मां के लिए मुख्यमंत्री ने बाकायदा हेलीकॉप्टर भेजा।
युवाओं के साथ नकल माफियाओं की मिलीभगत को लेकर उठे सवालों पर उस दौर की सरकार ने आंखें मूँद लीं।
“धामी से अदावत या युवाओं से सहानुभूति?”
त्रिवेंद्र सिंह रावत का हालिया बयान इसीलिए सवालों के घेरे में है। क्या यह वाकई बेरोजगार युवाओं के प्रति संवेदनशीलता है, या फिर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से पुरानी राजनीतिक अदावत?
याद रहे, जब धामी खटीमा से चुनाव हार गए थे तो सबसे पहले बयान त्रिवेंद्र ने ही दिया था—“मुख्यमंत्री विधायकों में से चुना जाना चाहिए।” साफ है कि धामी को शीर्ष पद पर देखना उन्हें कभी स्वीकार नहीं रहा।
अवैध खनन का “काला धब्बा”
यही नहीं, त्रिवेंद्र सरकार के समय अवैध खनन इतना बढ़ा कि कैग तक ने आपत्ति दर्ज की और मातृसदन हरिद्वार के संतों ने आत्महत्या कर ली। बावजूद इसके खनन माफियाओं को संरक्षण मिलता रहा। यही मुद्दा बाद में खुद सांसद रहते हुए त्रिवेंद्र ने संसद में उठाया और अपनी ही पार्टी सरकार को बैकफुट पर ला दिया।
असली श्रेय किसका?
पेपर लीक घोटाले की सीबीआई जांच का निर्णय दरअसल युवाओं के संघर्ष की जीत है।
धूप-बरसात, भूख-हड़ताल और पुलिसिया दमन सहकर जिसने आंदोलन को जिंदा रखा, असली श्रेय उन्हीं को है।
न कि उन नेताओं को, जो आज मिठाई बांटकर और ढोल बजाकर “हीरो” बनने की कोशिश कर रहे हैं।