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चम्पावत के देवीधुरा स्थित मां बाराही धाम मे 11 मिनट तक चला विश्व पाषाण युद्ध, विश्व प्रसिद्ध पाषाण युद्ध के साक्षी बने सीएम धामी, युद्ध में रणबांकुरे समेत 212 दर्शक हुए घायल।

चम्पावत के देवीधुरा स्थित मां बाराही धाम मे 11 मिनट तक चला विश्व पाषाण युद्ध, विश्व प्रसिद्ध पाषाण युद्ध के साक्षी बने सीएम धामी, युद्ध में रणबांकुरे समेत 212 दर्शक हुए घायल।

देवीधुरा ( चम्पावत) । चंपावत जिले के वाराही धाम देवीधुरा में रक्षाबंधन पर खोलीखाड़ दुबाचौड़ मैदान में पहली बार बगवाल दो बार खेली गई। 11 मिनट तक चली बगवाल में 212 लोग घायल हुए। घायलों को प्राथमिक इलाज के बाद छुट्टी दे दी गई। मां वाराही धाम मंदिर के मुख्य पुजारी महेश तिवारी और पीठाचार्य कीर्ति बल्लभ जोशी ने शंख ध्वनि के साथ बगवाल का शुभारंभ दोपहर 2:05 बजे किया। उत्साह के साथ हाहाहा-हीहीही के शब्दों का उच्चारण करते हुए 2:16 बजे तक बगवाल खेली गई। मौसम खराब होने के बाद भी सीएम पुष्कर सिंह धामी समेत 50 हजार हजार से अधिक दर्शक ऐतिहासिक बगवाल के गवाह बने।

सोमवार को खोलीखाड़ दुबाचौड़ मैदान में पहले सभी चारों खामों और सात थोक चम्याल, गहरवाल, लमगड़िया और वालिक के बगवाली वीरों ने मां वज्र वाराही का जयकारा लगाकर मां शक्ति पीठ की परिक्रमा की। वालिक खाम के बगवाली वीर खाम के मुखिया बद्री सिंह बिष्ट के नेतृत्व में मंदिर पहुंचे। इसी तरह गंगा सिंह चम्याल के नेतृत्व में चम्याल खाम, वीरेंद्र सिंह लमगड़िया के नेतृत्व में लमगड़िया खाम और दीपक सिंह बिष्ट के नेतृत्व में गहड़वाल खाम के बगवाली वीरों ने प्रवेश किया।

अपराह्न 2:05 पर शंखनाद के साथ युद्ध शुरू हुआ।इसके बाद चारों खामों के योद्धा अपने-अपने मोर्चे में डट गए। शंख ध्वनि के साथ ही मंदिर छोर से वालिक और लमगड़िया खाम ने फल-फूल बरसाकर बगवाल शुरू की। वहीं पूर्वी छोर से चम्याल और गहड़वाल खाम ने मोर्चा संभाला। इस दौरान फल-फूलों के बीच ईंट और पत्थरों से भी पाषाण युद्ध चला। 11 मिनट तक चले युद्ध को मुख्य पुजारी ने मैदान में पहुंचकर 2:16 पर युद्ध को समाप्त होने की घोषणा की। इस युद्ध में रणबांकुरे समेत 212 दर्शक घायल हुए, जिन्हें वहां मौजूद चिकित्सा टीम द्वारा उनका उपचार कराया गया।

खराब मौसम के बाद भी इस ऐतिहासिक पाषाण युद्ध को देखने के लिए 50 हजार से अधिक लोग यहां पहुंचे। जिला प्रशासन और जिला पंचायत द्वारा तमाम व्यवस्थाएं की गई थी। यहां यह मेला 26 अगस्त तक होगा, जहां विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।


इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने मां बाराही मंदिर में घंटी चढ़ाई तथा राज्य की खुशहाली एवं तरक्की की कामना की। मुख्यमंत्री, मां बाराही धाम में चार खाम सात तोक के बीच फल-फूलों से खेले जाने वाले विश्व प्रसिद्ध पाषाण युद्ध के साक्षी बने। इस वर्ष पाषाण युद्ध करीब 11 मिनट तक चला।

मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर घोषणा की कि रीठा में रतिया नदी में बाढ़ सुरक्षा का निर्माण कार्य एवं वैकल्पिक एप्रोच रोड का निर्माण कार्य किया जायेगा एवं मानसखण्ड कॉरीडोर के अन्तर्गत वाराही मंदिर के छूटे हुये अवस्थापना कार्यों को सम्मिलित किया जायेगा। मुख्यमंत्री ने विभिन्न विभागों द्वारा लगाए गए स्टॉलों का अवलोकन भी किया।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सभी को रक्षाबंधन की शुभकामनाएं देते हुए सभी देवी-देवताओं को नमन किया। उन्होंने कहा देवीधुरा के ऐतिहासिक और रमणीक क्षेत्र में आकर स्वयं को अभिभूत महसूस कर रहा हूं। बग्वाल मेला हमारी लोक संस्कृति, आस्था और परंपराओं का संगम है। यह मेला हमारी संस्कृति और परंपराओं को बढ़ावा देने के साथ ही हमारी संस्कृति का भी संवर्धन करता है। उन्होंने कहा पुरानी परंपराओं को निभाने और आगे बढ़ाने की ऊर्जा आने वाली पीढ़ी को मिलते रहनी चाहिए। पीढ़ी दर पीढ़ी लोक संस्कृति को आगे बढ़ाना हम सभी का कर्तव्य है।


मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि देवभूमि के कण-कण में देवताओं का वास है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हमारी सरकार देवभूमि की सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के साथ ही पौराणिक स्थलों का भी संवर्धन कर रही है। मानसखंड मंदिर माला मिशन के अंतर्गत कुमाऊं क्षेत्र के पौराणिक मंदिरों का सौंदर्यीकरण हो रहा है। देवीधुरा भी इस मिशन का महत्वपूर्ण भाग है। उन्होंने कहा चार धामों के साथ ही मानसखंड में मंदिरों को भी रोपवे से जोड़ने का कार्य जारी है। मां पूर्णागिरि धाम को रोप-वे से जोड़ा जा रहा है। मानसखंड यात्रा के तहत विशेष ट्रेन भी चलवाई जा रही हैं।

मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार राज्य में मंदिर के संवर्धन के साथ ही कृषि, दुग्ध उत्पादन, शिक्षा, बागवानी, जैसे विभिन्न क्षेत्रों में निरंतर कार्य कर रही है। चम्पावात महाविद्यालय को सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय के कैंपस के रूप विकसित किया जा रहा है। चंपावत मुख्यालय में एआरटीओ का उप कार्यालय खोला गया है। चम्पावत को आदर्श जिला बनाने के साथ ही उत्तराखंड को एक सर्वश्रेष्ठ राज्य बनाने पर राज्य सरकार निरंतर कार्य कर रही है।


इस दौरान मुख्यमंत्री द्वारा लोक कलाकार गिरीश बर्गली द्वारा तैयार “जय मां वाराही” वीडियो को लांच किया। इस अवसर पर धामी द्वारा हेलीपेड के निकट जीआईसी परिसर देवीधुरा में पौधा रोपण किया। वहीं उनके साथ जिला पंचायत अध्यक्ष ज्योति राय, विधायक खुशाल सिंह अधिकारी, विधायक राम सिंह कैड़ा, भाजपा जिला अध्यक्ष श् निर्मल माहरा, पूर्व सांसद डॉ. महेंद्र सिंह पाल, उपाध्यक्ष सेतु राजशेखर जोशी, वाराही मंदिर समिति संरक्षक लक्ष्मण सिंह लमगड़िया , अध्यक्ष मोहन सिंह बिष्ट,राजू बिष्ट , जिलाधिकारी नवनीत पांडेय, पुलिस अधीक्षक अजय गणपति आदि मौजूद रहे।

मेले का संचालन पीठाचार्य कीर्ति बल्लभ जोशी और चेतन भैय्या ने किया।


हर साल रक्षाबंधन पर चंपावत के देवीधुरा स्थित मां वाराही देवी मंदिर परिसर में बग्वाल मेले का आयोजन होता है. जिसमें फूल और फलों से बग्वाल युद्ध खेली गई. पहले यहां पाषाण यानी पत्थरों से युद्ध किया जाता था, लेकिन अब फलों से युद्ध किया जाता है. जानिए क्या है मान्यता…


चंपावत: उत्तराखंड के चंपावत जिले के देवीधुरा के प्रसिद्ध मां वाराही मंदिर परिसर में पौराणिक बग्वाल मेले का आयोजन हुआ. जिसमें फलों से बग्वाल खेली गई. जिसके साक्षी मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी बने. इससे पहले उन्होंने मां वाराही का पूजा अर्चना कर उत्तराखंड की खुशहाली की कामना की।


वाराही बग्वाल मेले को साल 2022 में घोषित किया जा चुका राजकीय मेला: गौर हो कि साल 2022 में चंपावत के प्रसिद्ध देवीधुरा के मां वाराही बग्वाल मेले को राजकीय मेला घोषित किया गया था. इस बार भी आषाढ़ी कौतिक के मौके पर 50 हजार से ज्यादा लोग बग्वाल मेले पहुंचे. जहां दशकों से चली आ रही बग्वाल युद्ध का आयोजन किया गया. जिसमें फूल और फलों से युद्ध को खेला गया।

चारों खामों (बिरादरी) के रणबांकुरों ने फूल और फल से युद्ध किया. इस बार सीएम पुष्कर धामी ने भी मेले में शिरकत की. इस दौरान सीएम धामी ने अपने संबोधन में कहा कि बग्वाल मेला हमारी लोक संस्कृति और परंपराओं का संगम है. ये मेले हमारी संस्कृति और परंपराओं को बढ़ावा देने के साथ ही संस्कृति का भी संवर्धन करते हैं।


सांस्कृतिक विरासत और पौराणिक स्थलों का किया जा रहा संरक्षण: इसके अलावा उन्होंने कहा कि देवभूमि उत्तराखंड के कण-कण में देवी-देवताओं का वास है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार देवभूमि की सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के साथ ही पौराणिक स्थलों का भी संवर्धन करने का काम कर रही है.

रोप वे की सुविधा से जोड़े जा रहे धार्मिक स्थल: सीएम धामी ने कहा कि धार्मिक स्थलों पर रोप वे सुविधा विकसित करने पर भी काम किया जा रहा है. मां पूर्णागिरि धाम को रोप वे से जोड़ा जा रहा है. मानसखंड मंदिर माला मिशन के तहत क्षेत्र के तमाम मंदिरों का सौंदर्यीकरण किया जा रहा है. जिसमें देवीधुरा का मंदिर भी शामिल है।


क्या है मान्यता:

नर बलि से शुरू हुई बगवाल, पत्थरों से होते हुए फल-फूलों तक पहुंची
देवीधुरा का बगवाल लोगों की धार्मिक मान्यता का रूप है। किंवदंती है कि एक वृद्धा के पौत्र का जीवन बचाने के लिए यहां के चारों खामों की विभिन्न जातियों के लोग आपस में युद्ध कर एक मानव के रक्त के बराबर खून बहाते हैं। क्षेत्र में रहने वाली विभिन्न जातियों में से चार प्रमुख खामों चम्याल, वालिक, गहड़वाल और लमगड़िया के लोग पूर्णिमा के दिन पूजा-अर्चना कर एक-दूसरे को बगवाल का निमंत्रण देते हैं।

मान्यता है कि पौराणिक काल में चार खामों के लोग अपने आराध्य मां वाराही देवी को मनाने के लिए नर बलि देते थे।कहा जाता है कि पूर्व में यहां नरबलि देने की प्रथा थी लेकिन जब चम्याल खाम की एक वृद्धा के एकमात्र पौत्र की बलि देने की बारी आई तो वंश नाश के डर से उसने मां वाराही की तपस्या की। माता के प्रसन्न होने पर वृद्धा की सलाह पर चारों खामों के मुखियाओं ने आपस में युद्ध कर एक मानव के बराबर रक्त बहाकर कर पूजा करने की बात स्वीकार ली। तभी से ही बगवाल का सिलसिला चला आ रहा है।

बगवाल में भाग लेने के लिए रणबांकुरों को विशेष तैयारियां करनी होती हैं। बगवाल लाठी और रिंगाल की बनी ढालों से खेली जाती है। स्वयं को बचाकर दूसरे दल की ओर से फेंके गए फल, फूल या पत्थर को फिर से दूसरी ओर फेंकना ही बगवाल कहलाता है।

आषाड़ी कौतिक के नाम से मशहूर देवीधुरा की बगवाल को देखने देश-विदेश के हजारों पर्यटक और श्रद्धालु देवीधुरा पहुंचते हैं। नौ वर्ष पूर्व तक बगवाल पत्थरों से खेली जाती थी लेकिन हाईकोर्ट के रोक लगाने के बाद अब फल और फूलों से बगवाल खेली जाती है। मेले के दौरान देवीधुरा की सड़कों पर पांव रखने को जगह नहीं थी। पुलिस ने करीब दो किमी पहले ही वाहन रोक दिए थे। जिले समेत आसपास के जिलों की पुलिस लगाई गई थी। मेले का संचालन पीठाचार्य कीर्ति बल्लभ जोशी और चेतन भैय्या ने किया।

uttarakhandlive24
Author: uttarakhandlive24

Harrish H Mehraa

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