कुमौड़ में हिलजात्रा देखने उमड़ा जन सैलाब ,सोरघाटी पिथौरागढ़ के विरासत का प्रतीक हिलजात्रा पर्व पर फूल, अक्षत से शांत हुआ लखिया का रोष।
पिथौरागढ़। जिला मुख्यालय स्थित कुमौड़ में हिलजात्रा देखने के लिए लोगों का जन सैलाब उमड़ पड़ा। लखिया के रोष को शांत करने के लिए महिलाओं ने फूल और अक्षत चढ़ाए। रोष शांत होने पर लखिया ने भी खुश होकर लोगों को आशीर्वाद दिया। लखिया को देखने के लिए करीब 30 हजार से ज्यादा लोग पहुंचे थे।
हिलजात्रा देखने के लिए दोपहर से ही कुमौड़ मैदान में दर्शक उमड़ने लगे थे। दोपहर बाद सबसे पहले मैदान में झाड़ू और घोड़े वाला आया। इसके बाद एक-एक कर गल्या बल्द, बड़ी नेपाली हल, छोटी हल, पुतारियां, दही वाला आदि पात्र आते रहे। रंग-बिरंगे मुखौटों में सजे पात्रों ने दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया। इनके बाद कुमौड़ के ऊपरी छोर से जैसे ही लाल-काली पट्टियों वाली काली पोषाक, डरावने मुखौटे, हाथों में चंवर और गले में घंटी बांधे लखिया भूत का पात्र मैदान की ओर बढ़ने लगा तो चारों ओर सन्नाटा पसर गया।
उत्तराखण्ड का पहाड़ी समाज प्राचीन काल से ही कृषि पर आधारित समाज है यही वजह है कि यहां के अधिकांश लोकपर्व भी कृषि पर ही आधारित है। सोरघाटी पिथौरागढ़ में सावन और भादो के महीने को कृषि पर्व के रूप में मनाने की परम्परा सदियों से चली आ रही है। सातूं आठूं से शुरू होने वाले इस पर्व का समापन पिथौरागढ़ में हिलजात्रा के रूप में होता है। हिलजात्रा का शाब्दिक अर्थ है कीचड़ का उत्सव। संभवतः बरसात के दिनों में इस पर्व के होने से इसके साथ यह नाम जुड़ा है।
इस पर्व में दर्जनों पात्र मुखौटों के साथ मैदान में उतरकर दर्शकों को रोमांचित करते है । मैदान में ये पात्र हुक्का चिलम पीते मछुवारे ,शानदार बैलो की जोड़ियाँ , छोटा बल्द , बड़ा बल्द , अड़ियल बैल, हिरन चीतल, ढोल नगाड़े, हुड़का, मजीरा , खड़ताल और घंटी की संगीत लहरी के साथ ही नृत्य करती नृत्यांगनाएँ , कमर में खुकुरी और हाथ में दंड लिए रंग बिरंगे वेश में पुरुषो के साथ ही धान की रोपाई का स्वांग करती महिलायें ऐसा नज़ारा पेश करते है कि हर कोई मन्त्र मुग्ध हो जाता है। ये सभी पात्र पहाड़ के कृषि प्रेम को भी दर्शाते है। इस पर्व का समापन लखिया भूत के आगमन के साथ होता है। जिसे भगवान वीरभद्र का ही अवतार माना जाता है। अचानक ही गाँव से तेज नगाड़ो की आवाज आने लगती है जो हिलजात्रा के प्रमुख पात्र लाखिया भूत के आने का संकेत है।
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ढोल-नगाड़ों की धुन पर पीछे से लखिया को लोहे की जंजीरों से दो विकराल गण पकड़े हुए थे। उन्हें लखिया को काबू करने में खासी मशक्कत करनी पड़ी। लखिया ने पूरे आवेश में मैदान का एक चक्कर लगाया। उनके रोष को कम करने के लिए लोगों ने फूल, अक्षत चढ़ाते हुए क्षमा याचना की। रोष शांत होने के बाद लखिया ने लोगों को सुख, समृद्धि और धन-धान्य का आशीर्वाद दिया। इसके बाद लखिया अपने स्थान को रवाना हो गया।
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लखिया के जाते ही हिलजात्रा के अन्य पात्र भी एक-एक कर चले गए। इस मौके पर जिपं अध्यक्ष दीपिका महर, पालिकाध्यक्ष राजेंद्र सिंह रावत, हिलजात्रा महोत्सव समिति के अध्यक्ष गोपू महर, यशवंत महर, किरन महर, राजेंद्र महर, कुंडल महर, चंद्र सिंह महर अजय रावत समेत डीएम रीना जोशी और अन्य प्रशासनिक अधिकारी मौजूद रहे।
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यह रहे हिलजात्रा के पात्र लखिया की भूमिका में महेंद्र सिंह महर, गण पवन सिंह महर व बलराज महर रहे। गल्या बल्द निखिल महर, हलिया जितेंद्र महर, बड़ी नेपाली हल में बल्द गौतम बिष्ट, समीर दिगारी और हलिया कैलाश दिगारी रहे। छोटी हल में बल्द मनोज महर, प्रकाश महर जबकि हलिया दीपक मेहता रहे।
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शांति व्यवस्था को भारी पुलिस बल तैनात हिलजात्रा को देखते हुए पुलिस ने यातायात व्यवस्था में बदलाव किया था। टनकपुर-हल्द्वानी से आने वाले वाहन ऐंचोली में रोके गए। धारचूला और झूलाघाट से आने वाले वाहनों को एपीएस मार्ग पर रोका गया था। शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए सौ से अधिक पुलिस अधिकारी और कर्मचारियों की तैनाती की गई थी।
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Author: uttarakhandlive24
Harrish H Mehraa