नैनीताल जिपं अध्यक्ष चुनाव विवाद:निर्वाचन आयोग के जवाब से संतुष्त नहीं हुआ हाईकोर्ट, बिना अनुमति वोट न डालने वाले 5 पंचायत सदस्यों पर क्या हुई कार्रवाई, चुनाव आयोग से मांगा शपथपत्र, अधिकारियों की कार्यशैली पर उठे सवाल।
नैनीताल, 27 अगस्त।उत्तराखंड हाईकोर्ट ने बीती 14 अगस्त को नैनीताल जिला पंचायत अध्यक्ष और उपाध्यक्ष चुनाव में हुए बवाल। पांच जिला पंचायत सदस्यों की कथित किडनैपिंग और अध्यक्ष पद के बैलेट पेपर में टेंपरिंग और ओवरराइटिंग की शिकायत को लेकर दायर की गई याचिका पर सुनवाई की।
सुनवाई के दौरान उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य निर्वाचन आयोग से चुनाव के दौरान हुई गड़बड़ियों व शिकायतों पर की गई पूरी कार्रवाई की विस्तृत जानकारी दो दिन के अंदर शपथ पत्र के साथ पेश करने को कहा है। इस मामले अगली सुनवाई आगामी एक सितंबर को होगी. आज मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश जी नरेंद्र व न्यायमूर्ती सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ में हुई।
उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने नैनीताल जिला पंचायत अध्यक्ष और उपाध्यक्ष चुनाव में हुई कथित अनियमितताओं पर कड़ा रुख अपनाया है। मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ ने राज्य निर्वाचन आयोग से पूछा कि उन पांच पंचायत सदस्यों के खिलाफ अब तक क्या कार्रवाई हुई, जिन्होंने बिना किसी अनुमति के मतदान में हिस्सा नहीं लिया।
अदालत ने इस बात पर भी नाराज़गी जताई कि मतदान के दिन अपहरण जैसे गंभीर आरोप लगे, बावजूद इसके कोई एफआईआर दर्ज नहीं हुई। अदालत ने साफ किया कि यह जांच इस बात पर हो रही है कि कहीं किसी को मतदान से रोका गया या बाध्य तो नहीं किया गया।
ऑब्जर्वर की रिपोर्ट पर सवाल
चुनाव आयोग की ओर से अधिवक्ता संजय भट्ट ने अदालत को बताया कि ऑब्जर्वर की दो रिपोर्ट प्रस्तुत की गई हैं, जिनमें कहा गया कि 100 मीटर दायरे में कोई गड़बड़ी नहीं हुई। इस पर खंडपीठ ने सवाल उठाया कि 100 मीटर की सीमा किस नियम के तहत तय की गई, जबकि नियमावली 500 मीटर तक भीड़ न होने का प्रावधान करती है।
डीएम और एसएसपी पर सख्त टिप्पणी
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा कि नैनीताल जिलाधिकारी वंदना सिंह व नैनीताल एसएसपी प्रह्लाद नारायण मीना की रिपोर्ट पर आयोग ने क्या निर्णय लिया? जिस पर चुनाव आयोग की तरफ से कोई संतुष्ट जवाब नहीं दिया गया. इसके बाद कोर्ट ने उस दौरान हुई कार्रवाही और आयोग ने क्या निर्णय लिया, इस पर विस्तृत जवाब पेश करने को कहा
डीएम वंदना सिंह वर्चुअल रूप से सुनवाई में शामिल रहीं। बताया गया कि उन्होंने पुष्पा नेगी की शिकायत पर एसएसपी की रिपोर्ट के आधार पर विस्तृत रिपोर्ट चुनाव आयोग को भेजी थी। लेकिन अदालत इस बात से संतुष्ट नहीं हुई कि संवेदनशील मुद्दे पर आयोग ने अब तक कोई निर्णायक कार्यवाही क्यों नहीं की।
सुनवाई के दौरान न्यायालय ने जिलाधिकारी वंदना सिंह और एसएसपी प्रह्लाद नारायण मीना की भूमिका पर भी सवाल खड़े किए। मुख्य न्यायाधीश ने तीखे लहजे में कहा, “डीएम पंचतंत्र की कहानी भेज रही थीं क्या?” साथ ही कहा कि एसएसपी पूरी तरह फेल साबित हुए। अदालत ने पूछा कि ऐसे में इन अधिकारियों की कार्यशैली पर आयोग ने अब तक क्या कार्रवाई की है।
वहीं, सरकार की तरफ से कहा गया कि जिसने याचिका दायर की है। वह खुद इस पद पर चुनाव नहीं लड़ रहा है. वह सदस्य है।इसलिए याचिका को निरस्त किया जाय। इसका विरोध करते हुए याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि वे भी जीते हुए सदस्य हैं।वे इसको चुनौती दे सकते है।
मामले के अनुसार जिला पंचायत सदस्य पूनम बिष्ट ने 20 अगस्त को हाईकोर्ट में पुनर्मतदान की मांग को लेकर याचिका दायर की थी। अपना याचिका ने उन्होंने नैनीताल जिला पंचायत अध्यक्ष पर की वोटिंग में एक बैलेट में टेंपरिंग और ओवरराइटिंग का आरोप लगाया था।जिसे अमान्य घोषित कर दिया गया। वहीं बिना प्रक्रिया को अपनाए आयोग ने चुनाव का परिणाम घोषित कर दिया।
हाईकोर्ट ने पूछा बिना अनुमति वोट न डालने वाले 5 पंचायत सदस्यों पर क्या कार्रवाई हुई, DM- SSP के लिए कही यह बात
उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने जिला पंचायत अध्यक्ष और उपाध्यक्ष चुनावों में कथित अनियमितताओं को लेकर चुनाव आयोग से कड़ा सवाल किया है। मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ ने आयोग से पूछा कि उन पांच सदस्यों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई, जिन्होंने बिना किसी अनुमति के मतदान में हिस्सा नहीं लिया। अगली सुनवाई अब 1 सितम्बर को होगी।
सुनवाई के दौरान अदालत ने यह भी जानना चाहा कि मतदान के दिन हुई घटनाओं पर एफ.आई.आर. दर्ज क्यों नहीं हुई, जबकि अपहरण जैसे गंभीर आरोप सामने आए थे। अदालत ने साफ कहा कि अब तक यह नहीं पूछा गया कि किसने किसको वोट दिया, बल्कि यह पूछा जा रहा है कि कहीं किसी को मतदान से रोका या बाध्य तो नहीं किया गया।
न्यायालय ने क्या निर्देश दिए?
चुनाव आयोग को सोमवार तक शपथपत्र के रूप में अपना पक्ष स्पष्ट करने को कहा गया है।
अदालत ने पूछा कि पांच गायब सदस्यों को नोटिस क्यों नहीं भेजे गए और उनकी अनुपस्थिति को गंभीरता से क्यों नहीं लिया गया।
यह भी कहा गया कि ए.आर.ओ. ने रिपोर्ट में स्पष्ट लिखा है कि उन्हें केवल पुनर्गणना का अधिकार है, पुनर्मतदान का नहीं।
याची की मांग –
वरिष्ठ अधिवक्ता देवेंद्र पाटनी ने न्यायालय से मांग की कि इस चुनाव को रद्द कर पुनः मतदान कराया जाए, क्योंकि कई एफआईआर अपहरण जैसे आरोपों को लेकर दर्ज की गई थीं और नियमों का उल्लंघन हुआ है।
अब सबकी निगाहें सोमवार 1 सितम्बर को चुनाव आयोग द्वारा दाखिल किए जाने वाले शपथपत्र पर हैं, जिसमें उसे अपनी भूमिका और कार्रवाई को स्पष्ट करना है। न्यायालय ने साफ संकेत दे दिए हैं कि वह इस पूरे मामले में गंभीरता से संज्ञान लेकर पारदर्शिता और नियमों की पालना सुनिश्चित करेगा।
पूरा मामला जानिए: दरअसल, 14 अगस्त को नैनीताल जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव के दौरान जमकर बवाल हुआ था। इस हंगामे के बीच पांच जिला पंचायत सदस्य लापता हो गए थे। बीजेपी और कांग्रेस ने एक-दूसरे पर पांचों जिला पंचायत सदस्यों को किडनैप करने का आरोप लगाया था। कांग्रेस इस मामले के लेकर हाईकोर्ट चली गई थी। हाईकोर्ट ने नैनीताल जिलाधिकारी को चुनाव पर स्थगित करने का आदेश दिया था।
वहीं नैनीताल जिलाधिकारी ने हाईकोर्ट की सुनवाई के बाद वोटिंग टाइम को बढ़ाया और देर रात को वीडियोग्राफी के साथ मतगणना भी करा दी थी।हालांकि चुनाव परिणाम घोषित नहीं किया था और उसे डबल लॉकर में रख दिया था।
नैनीताल जिलाधिकारी वंदना सिंह का कहना था कि निर्वाचन आयोग की नियमावली के अनुसार जिला निर्वाचन अधिकारी को चुनाव कैंसिल या फिर स्थगित करने का अधिकार नहीं है। निर्वाचन आयोग ने 16 अगस्त चुनाव परिणाम घोषित किया था।जिसमें बीजेपी प्रत्याशी दीपा दर्मवाल एक वोट से जीती थी।वहीं कांग्रेस प्रत्याशी ने एक मतपत्र में टेंपरिंग और ओवर राइटिंग का आरोप लगाया था।