हल्द्वानी-डॉ. सुशीला तिवारी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में कार्यरत लगभग 700 उपनल कर्मचारियों ने किया कार्य बहिष्कार, अनिश्चितकालीन हड़ताल की चेतावनी -।
डॉ. सुशीला तिवारी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में कार्यरत लगभग 700 उपनल कर्मचारी हड़ताल पर चले गए। हाथों में तख्तियाँ, आँखों में ग़ुस्सा और दिल में एक ही सवाल कब तक?
हल्द्वानी:सोमवार को उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में स्थित सबसे बड़े सरकारी अस्पताल, डॉ. सुशीला तिवारी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल से एक और ख़बर आई है और ये ख़बर एक दस्तावेज़ है उस खामोशी की, जिसे हमने ‘सरकारी सिस्टम’ नाम दे रखा है।कुमाऊं के सबसे बड़े सरकारी हॉस्पिटल डॉ सुशीला तिवारी अस्पताल में आज मरीजों को खासी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।
हल्द्वानी: कुमाऊं के सबसे बड़े सरकारी हॉस्पिटल डॉ सुशीला तिवारी अस्पताल और मेडिकल कॉलेज में कार्यरत उपनल कर्मचारियों ने सोमवार को कार्य बहिष्कार कर दिया। इस दौरान उपनल कर्मचारियों ने अस्पताल प्रबंधन और सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की. उपनल कर्मचारियों ने अपनी मांगों को पूरा किए जाने की मांग की
सुशीला तिवारी हॉस्पिटल में कार्यरत करीब 700 कर्मचारी हड़ताल पर चले गए हैं. कर्मचारियों ने आरोप लगाते हुए कहा कि वह पिछले 20 सालों से अधिक समय से सुशीला तिवारी हॉस्पिटल में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. कोविड के दौरान भी उन्होंने अपनी जान जोखिम में डालकर मरीजों की सेवा की थी, लेकिन पिछले चार महीनों से उनको अभी तक वेतन नहीं दिया गया है. कर्मचारी पूरी उम्र अपनी सेवा देते आ रहे हैं, लेकिन उनको अभी तक स्थाई कर्मचारी भी नहीं बनाया गया. बहुत से कर्मचारी अब रिटायर होने की उम्र में आ चुके हैं, लेकिन उनको अभी तक स्थाई भी नहीं किया गया।
कर्मचारियों ने साफ किया है कि यदि उनकी मांगें पूरी नहीं हुईं तो वो जल्द बड़ा आंदोलन करेंगे. कर्मचारियों ने अस्पताल प्रशासन को चेतावनी दी है कि तीन दिन के भीतर में उनकी मांगें पूरी नहीं हुईं तो मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के सभी कर्मचारी अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले जाएंगे, जिसकी पूरी जिम्मेदारी अस्पताल प्रशासन की होगी।
मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. अरुण जोशी का कहना है कि मामला शासन स्तर पर लंबित है, और जैसे ही बजट रिलीज़ होगा, वेतन दे दिया जाएगा।लेकिन सवाल ये है कि अगर सेवा 20 साल से हो रही है, तो पद अब तक क्यों नहीं सृजित हुए? क्या 20 साल तक किसी कर्मचारी को ‘अस्थायी’ कहा जाना ही नीति है? इधर कर्मचारियों ने अस्पताल प्रबंधन और सरकार को साफ चेतावनी दी है अगर तीन दिन के भीतर उनकी मांगें नहीं मानी गईं, तो वे अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले जाएंगे। इसका सीधा असर अस्पताल की व्यवस्था पर पड़ेगा, और इसका जिम्मेदार खुद प्रशासन होगा। और अब यहां सबसे बड़ा सवाल य़ह है कि क्या सरकार को तब ही सुनाई देता है, जब कर्मचारी सड़क पर उतरते हैं? क्योंकि अस्पताल में इलाज ज़रूरी है, लेकिन उससे पहले न्याय का इलाज ज़रूरी है। क्योंकि भूखा पेट दवा नहीं बांट सकता।