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राज्य सरकार ने जोशीमठ भू-धंसाव पर वैज्ञानिक संस्थाओं की रिपोर्ट को किया सार्वजनिक,8 वैज्ञानिक संस्थानों की रिपोर्ट ने इन कारणों को माना गया प्रमुख वजह।

राज्य सरकार ने जोशीमठ भू-धंसाव पर वैज्ञानिक संस्थाओं की रिपोर्ट को किया सार्वजनिक,8 वैज्ञानिक संस्थानों की रिपोर्ट ने इन कारणों को माना गया प्रमुख वजह।

वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान की रिपोर्ट में कहा गया कि जोशीमठ की मिट्टी का ढांचा बोल्डर, बजरी और मिट्टी का एक जटिल मिश्रण है। यहां बोल्डर भी ग्लेशियर से लाई गई बजरी और मिट्टी से बने हैं, इनमें ज्वाइंट प्लेन हैं, जो इनके खिसकने का एक बड़ा कारण हैं।

देहरादून। नैनीताल हाईकोर्ट को सख्ती के बाद आखिरकार सरकार को जोशीमठ भू-धसाव पर वैज्ञानिक संस्थाओं की रिपोर्ट को सार्वजनिक करना पड़ा। करीब 718 पन्नों में आठ वैज्ञानिक संस्थाओं की यह रिपोर्ट के अनुसार जमीन में पानी के रिसाव के कारण चट्टानों के खिसकने से भूसा हो रहा है।आठ वैज्ञानिक संस्थाओं ने भी अपनी 139 पन्नों की रिपोर्ट तैयार की थी इसे भी अब सार्वजनिक कर दियागया है। रिपोर्ट में जोशीमठ में भू-धंसाव के कई कारणों और की टाइन प्लानिंग का विस्तृत ब्योरा दिया गया है।

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सरकार ने आठ विभिन्न वैजनिक संस्थाओं को भू-धाव और जोशीमठ की जड़ में निकल रहें पानी के कारणों को जानने के लिए मैदान में उतारा था। तमाम वैज्ञानिक संस्थानों से बहुत पहले ही अपनी रिपोर्ट सरकार की सौंप दी थी, लेकिन सरकार ने इसे दबाए रखा। इस मामले में अल्मोड़ा के पीसी तिवारी ने याचिका दायर कर रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की मांग की थी। हाईकोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा था कि सरकार को ऐसे मामलों की रिपोर्ट जल्द सामने रख लोगों से साझा करनी चाहिए। इसके बाद उत्तराखंड राज्य आपदा ओर से रिपोर्ट को सार्वजनिक करते हुए वेबसाइट पर अपलोड किया गया है।

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जमीन के भीतर पानी रिसने से चट्टानों का खिसकना भू-धंसाव का कारण ????
नैनीताल हाईकोर्ट की सख्ती के बाद आखिरकार राज्य सरकार को जोशीमठ भू-धंसाव पर आठ वैज्ञानिक संस्थाओं की रिपोर्ट को सार्वजनिक करना पड़ा। 718 पन्नों की रिपोर्ट में मोरेन क्षेत्र (ग्लेशियर की ओर से लाई गई मिट्टी) में बसे जोशीमठ की जमीन के भीतर पानी के रिसाव के कारण चट्टानों के खिसकने की बात सामने आई है, जिसके कारण वहां भू-धंसाव हो रहा है।

जोशीमठ हिमालयी इलाके में जिस ऊंचाई पर बसा है, उसे पैरा ग्लेशियल जोन कहा जाता है। इसका मतलब है कि इन जगहों पर कभी ग्लेशियर थे, लेकिन बाद में ग्लेशियर पिघल गए और उनका मलबा बाकी रह गया। इससे बना पहाड़ मोरेन कहलाता है। इसी मोरेन के ऊपर जोशीमठ बसा है।

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वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान की रिपोर्ट में इस बात का प्रमुखता से जिक्र किया गया है कि जोशीमठ की मिट्टी का ढांचा बोल्डर, बजरी और मिट्टी का एक जटिल मिश्रण है। यहां बोल्डर भी ग्लेशियर से लाई गई बजरी और मिट्टी से बने हैं। इनमें ज्वाइंट प्लेन हैं, जो इनके खिसकने का एक बड़ा कारण है। रिपोर्ट के अनुसार, ऐसी मिट्टी में आंतरिक क्षरण के कारण संपूर्ण संरचना में अस्थिरता आ जाती है। इसके बाद पुन: समायोजन होता है, जिसके परिणामस्वरूप बोल्डर धंस रहे हैं।

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uttarakhandlive24
Author: uttarakhandlive24

Harrish H Mehraa

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