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महावीर चक्र से अलंकृत जसवंत सिंह रावत जी की जयंती पर शत्-शत् नमन। वो जांबाज़ 72 घंटे अकेले 300चीनी सेना से भिड़ने वाला सैनिक अरुणांचल को बचाया,जिसकी आत्मा अब भी सीमा की सुरक्षा करती है।

महावीर चक्र से अलंकृत जसवंत सिंह रावत जी की जयंती पर शत्-शत् नमन। वो जांबाज़ 72 घंटे अकेले 300चीनी सेना से भिड़ने वाला सैनिक अरुणांचल को बचाया,जिसकी आत्मा अब भी सीमा की सुरक्षा करती है।

जसवंत सिंह रावत, जिन्होंने 300 चीनी सैनिकों का अकेले सामना किया, और वीरता की एक अनूठी कहानी लिख डाली. तो आइए जानते हैं कि किस तरह से उन्होंने चीनी सैनिकों के छक्के छुड़ाए थे:


कौन थे शहीद बाबा जसवंत सिंह रावत

जसवंत सिंह रावत: वो जांबाज़ जो अकेले 72 घंटों तक 300 चीनी सैनिकों से जूझा और अरुणांचल को बचाया।

1962 हुए भारत-चीन युद्ध के कई किस्से आज भी जीवंत हैं। इस युद्ध में जिस तरह भारतीय जवानों ने अपनी शौर्यता का परिचय दिया, वह भारत को हमेशा गर्व की अनुभूति कराता रहेगा।

इस युद्ध के दौरान एक पल ऐसा आया था, जब चीन ने अरुणाचल प्रदेश को हथियाने के इरादे से वहां की सीमा पर हमला बोल दिया. मगर उन्हें नहीं पता था कि वहां उनका सामना भारतीय सेना के एक ऐसे जवान से होने वाला था, जो उनके लिए काल बनकर बैठा था. वह जवान कोई और नहीं राइफलमैन जसवंत सिंह रावत थे।

सुबह के करीब 5 बजे चीनी सैनिकों ने अरुणाचल प्रदेश पर कब्जे के इरादे से सेला टॉप के नजदीक धावा बोल दिया. मौके पर तैनात गड़वाल राइफल्स की डेल्टा कंपनी ने उनका सामना किया.

जसवंत सिंह रावत इसी का हिस्सा थे. मौके की नजाकत को देखते हुए जसवंत तरंत हरकत में आ गए और उन्होंने अपने साथियों के साथ हरकत शुरू कर दी. इस तरह 17 नवंबर 1962 को शुरू हुई यह लड़ाई अगले 72 घंटों तक लगातार जारी रही. इस बीच जसवंत अकेले ही चीनी सैनिकों पर भारी पड़े।


उन्होंने अपनी विशेष योजना के तहत अकेले ही करीब 300 से अधिक चीनी सैनिकों मार गिराया था. वह चीनी सैनिकों को अरुणाचल की सीमा पर रोकने में कामयाब भी हुए, लेकिन उन्हें पीछे नहीं धकेल सके. कहते हैं कि लड़ाई के बीच उन्हें पीछे हटने के आदेश दे दिए गए थे।

जसवंत सिंह को पीछे हटने के आदेश मिले मगर…
दरअसल उनकी टुकड़ी के पास मौजूद रसद और गोली- बारूद खत्म हो चुके थे. ऐसे में दुश्मन के सामने खड़े होने का मतलब था, मौत को गले लगाना. पर जसवंत तो जसवंत थे! उन्होंने इस आदेश को नहीं माना और अपनी आखिरी सांस तक दुश्मन का सामना करते रहे. ऐसा भी नहीं था कि उन्हें दुश्मन की ताकत का अंदाजा नहीं था, पर वह जानते थे कि जंग कितनी भी बड़ी क्यों न हो, जीतना नामुमकिन नहीं होता।

जसवंत की शौर्यगाथा में ‘सेला और नूरा’ नाम के दो बहनों का जिक्र भी आता है. कहते हैं कि चीनी सैनिकों से लड़ते हुए, जब उनके सारे साथी शहीद हो गए, तो उन्होंने तय किया कि वह लड़ाई का तरीके बदलेगें। इसके लिए उन्होंने नई रणनीति बनाई।उन्होंने दुश्मन को इस बात का भ्रम होने दिया कि भारतीय सैनिक खत्म हो चुके है. साथ ही बड़ी चतुराई से बचा हुए सारे हथियार और गोला-बागरु बंकरों में इकट्ठे किए. इसमें सेला और नूरा नाम की बहनों ने उनकी मदद की थी. उन्होंने जसवंत के खाने-पीने का भी ख्याल रखा।

300 चीनी सैनिकों को मार गिराया!
जल्द ही जसवंत की तरफ से खामोशी देखकर चीनी सैनिकों को भरोसा हो गया कि भारतीय सैनिक खत्म हो चुके हैं. मसलन, वो निडर होकर आगे बढ़ने लगे. जसवंत को इसी मौके का इंतजार था. उन्होंने अचानक उन पर गोलियां बरसानी शुरू कर दी।

वह अपनी जगह बदल-बदल कर उन पर हमला कर रहे थे. वह कुछ इस तरह लड़ रहे थे, जैसे मानों एक आदमी नहीं, बल्कि कोई बटालियन लड़ रही हो. काफी समय तक जसंवत यूहीं लड़ते रहे और चीनी सैनिकों पर भारी पड़ते रहे।

हालांकि, आगे वह चीनी सैनिकों द्वारा टारगेट कर लिए गए. जब जसंवत को लगा कि वह पकड़े जाएंगे, तो उन्होंने मौत को गले लगा लिया. दावा किया जाता है कि इस जंग में जसवंत ने अकेले ही करीब 300 चीनी सैनिकों सैनिकों को मार गिराया था।

जसवंत सिंह भी जिंदा, सीमा पर है तैनात!

दिलचस्प बात यह है कि जसवंत को शहीद हुए कई साल हो गए है, लेकिन अरुणाचल के लोग मानते हैं कि वह अभी भी जिंदा हैं और सीमा पर तैनात है. उनकी मान्यता कितनी मजबूत है, इसको इसी से समझा जा सकता है कि लोगों ने उनकी याद में जसवंत गढ़ का निर्माण किया।

अगर आप जसवंत गढ़ गए होंगे, तो जानते होंगे कि जसवंत गढ़ में एक ऐसा मकान मौजूद है, जिसके बारे में कहा जाता है कि जसवंत इसमें रहते हैं. इस मकान में एक बिस्तर रखा हुआ है, जिसे पोस्ट पर तैनात सेना के जवान रोज सजाते हैं। उनके जूते नियमित रूप से पॉलिश किए जाते हैं।

आपको जानकर हैरानी हो सकती है, लेकिन जसवंत एकलौते ऐसे शहीद हैं, जिनका शहादत के बाद भी नियमित प्रमोशन जारी है. वर्तमान में वह मेजर जनरल के पद पर हैं. वैसे जसवंत को उनकी बहादुरी के लिए मरणोपरांत महावीर चक्र जैसे बड़े सम्मान से भी सम्मानित किया गया।

शहीद जसवंत सिंह रावत पर 72 आवर्स: मार्टियर हू नेवर डाइड नाम की एक फिल्म भी बनाई गई. निर्देशक के तौर पर अविनाश ध्यानी ने फिल्म में जसवंत सिंह की वीरता को बखूबी बयां किया है. इस फिल्म को दर्शकों का खूब प्यार मिला था।

जसवंत सिंह की वास्तविक कहानी चाहे जो भी हो, लेकिन स्थानीय लोगों के दिलों में जिस तरह से वह आज भी जिंदा है. वह तो यही बताता है कि जब तक उनके अमर बाबा जसवंत सिंह वहां तैनात है, तब तक दुश्मन उनका बाल भी बांका नहीं कर सकता. फिर दुश्मन कितना भी मजबूत क्यों न हो।

UTTARAKHAND LIVE 24  अमर सपूत, महावीर चक्र से अलंकृत जसवंत सिंह रावत जी की जयंती पर शत्-शत् नमन।

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Author: uttarakhandlive24

Harrish H Mehraa

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